Threads of time...
Tuesday, August 26, 2008
खामोशी
खामोश रहिये तो क्या क्या सदाएं आती हैं,
पुकारिए तो कोई मुड़ के देखता भी नहीं....
यह शहर है चंद अनजानों का
जहाँ साया भी लगता बेमानी है
सिर्फ़ कुछ बदहवास आवाजें हैं
और चारो और अजीब सी वीरानी है
पुकारिए तो कोई मुड़ के देखता भी नहीं....
यह शहर है चंद अनजानों का
जहाँ साया भी लगता बेमानी है
सिर्फ़ कुछ बदहवास आवाजें हैं
और चारो और अजीब सी वीरानी है
Labels: विराना
posted by Nomade at 10:51 PM
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