Threads of time...

Tuesday, August 26, 2008

उनकी अदा

सुनो यह नया वार कहाँ से सिखा आपने
हर प्रहार का जवाब मुस्कुरा करा कर देने का
कोई हूनर बाकी था जो यह भी आजमाया हम पर
अपने खुदा से भी लड़ पाया है क्या कोई
आपके आगे हथियार डालने ही पड़ते हैं
कोई दिल में इतना गहरा उत्तर सकता है मालूम न था
एक चुलबुली सी ,जान से भी ज्यादा प्यारी सी
उस रब की बनायीं हुई एक मूरत है आप
जिसको सिर्फ प्यार करने और
आँखों पर बैठाये रखने को दिल चाहता है
इठलाती चंचल बलखाती मटकती, रुठती ,खिलखिलाती
हर बात में सिर्फ अपनी चलाती
कभी पास आती कभी दूर जा करा नखरे दिखाती
बहती नदी जैसी चपल चंचल निर्मल
जीवन का दिव्ये स्त्रोत्र वोह जगमगाती
पास हो तो आनंद ही आनंद और खुशियाँ ही खुशियाँ
दूर जाए तो जैसे दिल के हजारों टुकड़े कर जाती
संजौता में फिर बैठा उन् टुकडों को
जिसमे उस शोख कली की झलक मुस्कुराती
ऐसे ही नहीं वोह हमारी जान कहलाती

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posted by Nomade at 5:31 PM

1 Comments:

and this is dedicated to??????lovely. you inspire me to write.

September 3, 2008 at 2:20 PM  

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