Threads of time...
Thursday, July 31, 2008
उसकी आँखें
उसकी आँखों में झलकता अजब सा खुमार है
होठों पर जैसा आई सारे गुलिस्तान की बहार है
जब शर्माती है वोह तो गुलाबी आसमान से ज्युँ बरसता प्यार है
कोई शोला है या गुलफाम या कोई सब्ज़ परी है वोह
या फिर किस्सी की मन्नतों का हँसता खेलता उपहार है
होठों पर जैसा आई सारे गुलिस्तान की बहार है
जब शर्माती है वोह तो गुलाबी आसमान से ज्युँ बरसता प्यार है
कोई शोला है या गुलफाम या कोई सब्ज़ परी है वोह
या फिर किस्सी की मन्नतों का हँसता खेलता उपहार है
Labels: वोह
posted by Nomade at 8:59 PM
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