Threads of time...
Tuesday, February 5, 2008
उनके सितम
आज फिर एक हादसा हम पर गुज़र गया यारों
फिर कोई सारे पुराने जख्म हरे करा गया यारों
जिनके लबों पर मुस्कराहट देखने को तड्र्पा किये हम
आज वोही हमारी ऑंखें भोझल कर गए यारों
न उल्फत ही की,न मोहबत ही रही, न दोस्ती का कोई हक
रही तो सिर्फ उनकी जिद्द और हमारी मोहबत की इन्तहा
अब आलम यह है की वह रुक रुक के वार करते हैं
और हम अपने ही वायेदों में बंधे हर सितम सहते हैं
कोई पूछे उनसे की क्युओं जन्मों तक साथ रहने की कसम ली
जब दो कदम साथ चलने से ही उनके पाँव में छाले पड़ गए
कहते थे की उनके पाक दामन को धोखा परस्ती रास नहीं आती
आज उस्सी दामन पर हम अपना लहू-लूहान जिगर तड़पता देखते हैं.
हमको वह गैर बताते हैं, और गैरों को गले लगाते हैं
गोया शाख से टूटा हुआ फूल है हम जो रौंद के आगे बड़े जाते हैं
न हो उन् पर भी कभी यही कहर बरपा , हम इस्सी बात से घबराते हैं
पी लेते हैं हर एक आंसू और दिल में मलाल नहीं लाते हैं !!!
फिर कोई सारे पुराने जख्म हरे करा गया यारों
जिनके लबों पर मुस्कराहट देखने को तड्र्पा किये हम
आज वोही हमारी ऑंखें भोझल कर गए यारों
न उल्फत ही की,न मोहबत ही रही, न दोस्ती का कोई हक
रही तो सिर्फ उनकी जिद्द और हमारी मोहबत की इन्तहा
अब आलम यह है की वह रुक रुक के वार करते हैं
और हम अपने ही वायेदों में बंधे हर सितम सहते हैं
कोई पूछे उनसे की क्युओं जन्मों तक साथ रहने की कसम ली
जब दो कदम साथ चलने से ही उनके पाँव में छाले पड़ गए
कहते थे की उनके पाक दामन को धोखा परस्ती रास नहीं आती
आज उस्सी दामन पर हम अपना लहू-लूहान जिगर तड़पता देखते हैं.
हमको वह गैर बताते हैं, और गैरों को गले लगाते हैं
गोया शाख से टूटा हुआ फूल है हम जो रौंद के आगे बड़े जाते हैं
न हो उन् पर भी कभी यही कहर बरपा , हम इस्सी बात से घबराते हैं
पी लेते हैं हर एक आंसू और दिल में मलाल नहीं लाते हैं !!!
Labels: अपने करम
posted by Nomade at 10:40 PM
0 Comments:
Post a Comment
<< Home