Threads of time...

Sunday, January 27, 2008

ये लम्हे

आसान नहीं इन् लम्हों को भुला देना
कि आता है उनको हमे ख़ुशी से रुला देना
न वह जन्मे साथ न हमजोली जवान हुए
कोई कोल या इकरार नहीं था जो बंध जाते
थक न गए वह अपने सलीब उठाते उठाते
हमे भी बिठा लिया अपनी पलकों पर आते जाते

इतनी शिद्दत से उन्होने संजोया यह बिखरा चमन
हमारी बदनसीबी में भी खुदा नुमाया करा गए आते जाते
हमे इंसानियत कि तलाश थी इस जम्हुरिअत के सैलाब में
पलट के देखा तो दामन था एक फरिश्ते के हाथ में
जिगर लहू-लुहान था उसका चेहरे पर थी हलकी सी उदासी
आँखों में नमी थी पर वह रूह सबसे जुदा थी
जिसमे अभी भी दूसरो के गम जज्ब करने कि हया थी.
एहसान माने उनका या जिंदगी कि तहरीर सीखें उनसे
होगी अगर कोई तो येही होगी तस्वीर उस खुदा की.

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posted by Nomade at 11:19 PM

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