Threads of time...

Thursday, November 22, 2007

हम तुम

न हम आयें
न आप बुलायें
फासले जो आप बनायें
कदम कदम पर हम उनको निभाएं

इज्ज़त है जो हमारे दिल में
उसको आपकी निघाहें जूठ्लाये
आप हेर दम कहतें तो हैं हमे अपना
अब आपके अंदाज़ बेरुखी दिखायें तो हम कहाँ जाएँ.

खुद्दार हम भी हैं
दौरता है इन् रगों में खून अभी
पर क्युओं कर अपने ही जिगर को ज़ख्मी बनायें
आपकी देखा देखी क्युओं कर हम अपने पर लानत लायें

एक मुट्ठी राख है जिंदगी
आज चल बसे और राख़ धुल में मिली
चलेंगी ज्युओं ही हवाये न हाथ आयेंगी हमारी जूस-तजू
न रुकेगा वक़्त,न रहेंगी वह फिजायें,तलाशेंगी हमको आपकी सुनी निगाहें !
posted by Nomade at 9:32 PM

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