Threads of time...

Monday, November 19, 2007

अद्रिशेय पुल


एक आभास , एक अनुभूति... कोई शख्स मीलों दूर बैठा है पर उसके करीब होने का एहसास उतना ही सजीवहोटा
जितना अपने दिल कि धर्कानो को महसूस करना...कैसे हो जाता है इतना करीबी रिश्ता...कैसे जूड़ जाते हैं दिल के
... कैसे वह आपके ख्यालों में अपना स्थान बना लेटा है और आपको पता भी नहीं चलता...समाये के बीतेतेय
आप एक सामान्तर दुनिया में जीने लगते हैं...आप यहाँ और वेह दिल का आधा हिस्सा वहाँ, दुरिया सिर्फ भोगोलिक
या सामयिक हो सकती है पर दिल-ओ-दिमाग में कोई अंतराल नहीं...वेह आपकी साँसों में सजीव हो उठता है..आपके
अन्त्र्मन्न में जगमगाता है..आपकी प्रथ्नाओं में स्थान पता है...और देखते देखते जिंदगी का एक सुन्हेरा हिस्सा
न जाने यूहीं बीत जाता है ,जैसे अभी कल कि ही बात हो...वह साथ नहीं हैं पर जैसे सावन कि घटता छाई हो...
चारों तरफ उल्लास है...उत्सव का आभास है...इतना सब सिर्फ इस्स्लिये कि उनकी याद आपके पास है...या फिर इस्स्लिये कि हम
कुछ अद्रिशेय तारों या तरंगों के साथ उन् सभी लोगों से जुड़ जाते हैं जिसको हमारा दिल और दिमाग अपना
समझता है..जिंदगी का एक अच्छा खासा बड़ा हिस्सा हम इस अद्रिशेय दुनिया में जीते हैं..इन् सुन्हेरी पलों
कि पर्चियों में सुख और दुखों कि नैया में तैरते उत्त्रातेय हैं..और कभी कभी जब यह बन्धन बहूत
गहरा हो जाता है तब मानों जैसे इस छोर से उस छोर तक कोई अद्रिशेय पुल बन जाता है जो भावनाओं को
यहाँ से वहाँ और वहाँ से इस पार तक पहुंचता है.. .जिंदगी के इस हिस्से कि न कोई तस्वीर ली जा सकती
है न ही इस्सको पूरी तरह से समझ कर शब्दों में उतरा जा सकता है...सिर्फ महसूस किया जा सकता है..
शायद बिल्कुल हमारे और परम पिता परमेश्वर के रिश्ते कि मनीन्द...सिर्फ विश्वास कि गहराई ही एक वेह
तुल्लिका है जो इस अनदेखी पटल को विविध प्रकार के रंग से संवार सकता है !

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posted by Nomade at 10:45 AM

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