Threads of time...
Thursday, November 15, 2007
वजूद या दूरियां
दूरियां होने से दो शक्सियतों का वजूद कायम रहता है, फासले खतम कर के वजूद खतम करने कि बात करें या दुरिया बड़ा कर वजूद कायम रखें ?
दिल कहता है कुछ तो समागम हो दोनो का ...कोई तो बन्धन हो,कही तो कोई मिलन हो,जिंदगी कि परतों के बीच ज्यूँ दो नदियों का संगम हो ! जब निर्जीव कर्ण फासले तये कर सुदूर कारणों में समां सकता है तो सजीव प्राणी क्युओं नहीं ? शायद क्युओंकी प्राणी का लक्ष्य एक होने पर भी, विचार धाराएं हजार होती हैं,उन्ही के माया जाल में वेह उलझता , उतराता रहता है...जब नदी अपने गंतव्य स्थान का फासला तेये कर रही होती है..वेह उसके किनारे बैठ..उसके दुसरे किनारे..और स्रोत्र , गहराई और विस्तार में उलझा होता है !
समय एक बहती नदी है..जिसका काम सिर्फ चलना है..रवानगी लाना है..जो उसके साथ हो लिया वेह तर गया..
बहेंगे सभी..जो हलके हो कर बहे वेह जल के उप्पर और जो अपना वजूद ले कर भरी हो गया वेह नदी के तल पर
आगे सभी ने बदना है...
इंसानी फितरत कुछ अजीब ही है..कुछ लोग विचारों तक पर पहरा लगा लेते है ,ज्ञान नहीं बांटते,और कोई कोई ने अपने दिल का झरोखा खोल कर रख देता है !
दिल कहता है कुछ तो समागम हो दोनो का ...कोई तो बन्धन हो,कही तो कोई मिलन हो,जिंदगी कि परतों के बीच ज्यूँ दो नदियों का संगम हो ! जब निर्जीव कर्ण फासले तये कर सुदूर कारणों में समां सकता है तो सजीव प्राणी क्युओं नहीं ? शायद क्युओंकी प्राणी का लक्ष्य एक होने पर भी, विचार धाराएं हजार होती हैं,उन्ही के माया जाल में वेह उलझता , उतराता रहता है...जब नदी अपने गंतव्य स्थान का फासला तेये कर रही होती है..वेह उसके किनारे बैठ..उसके दुसरे किनारे..और स्रोत्र , गहराई और विस्तार में उलझा होता है !
समय एक बहती नदी है..जिसका काम सिर्फ चलना है..रवानगी लाना है..जो उसके साथ हो लिया वेह तर गया..
बहेंगे सभी..जो हलके हो कर बहे वेह जल के उप्पर और जो अपना वजूद ले कर भरी हो गया वेह नदी के तल पर
आगे सभी ने बदना है...
इंसानी फितरत कुछ अजीब ही है..कुछ लोग विचारों तक पर पहरा लगा लेते है ,ज्ञान नहीं बांटते,और कोई कोई ने अपने दिल का झरोखा खोल कर रख देता है !
Labels: रवानगी
posted by Nomade at 12:23 PM
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