Threads of time...

Tuesday, November 20, 2007

वह हमारी जंदगी में आये क्युओं

कोई सुन्हेरे खवाब दिखलाये क्युओं
हर पल ख्यालों में आकर सताए क्युओं
नज़रें भी जो मिल पाना न हो मुमकिन
तों दिल में गेहेरे जा बैठ जाये क्युओं
जब हों उसके चारों और बन्दीस्हें
तों हमे अपने मोह में बंधाये क्युओं
नहीं आती जो उनके दर से उनकी खबर
तों हमे चिंताएँ सतायें क्युओं
तरसते राहे हम उनकी आवाज़ सुनने को
पर वह रुखसार हो हमे बुलाएं क्युओं
हम भेजें उन्हें रोज़ सदाक़त के ख़त
पर उनके दर से कोई जवाब आये क्युओं
हम तों बने ही थे नादान पतंगा
उन्होने रौशनी के चिराग जलाये क्युओं
लिखी थी जो इतनी बेरुखी तकदीर में
तों या रब उनके दीदार करवाए क्युओं !
posted by Nomade at 11:56 AM

1 Comments:

in sawaln ke jawaab milna.... hmnnn I really doubt..if we can ever get that.... may be if we try to figure out the solutions within ourselves rather than asking someone else.. .. may be then there is a hope....otherwise.... but these things do happen..Y...it's again a big question ?

November 22, 2007 at 9:39 AM  

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