Threads of time...
Friday, December 28, 2007
वह औरत
आज फिर कहीं गोली चली है
हैवानियत ने इंसानियत कि जान ली है
अमन चैन के लिए क्योँ भयानक आवाज गुंजी है
वह तो एक माँ थी, औरत भी कहीं तानाशाह बनी है
चड़्ते सूरज कि किरण थी,बेजुबानों कि आवाज थी वह
आने वाले एक नए सुन्हेरी इन्तिखावाब का आगाज़ थी वह
फिर क्युओं जालिमों के दिल में खौफ और नफरत कि परत जमी है
बेबाक हिम्मत और रूहानियत कि जान आज फिरसे कायरों ने ली है !!
हैवानियत ने इंसानियत कि जान ली है
अमन चैन के लिए क्योँ भयानक आवाज गुंजी है
वह तो एक माँ थी, औरत भी कहीं तानाशाह बनी है
चड़्ते सूरज कि किरण थी,बेजुबानों कि आवाज थी वह
आने वाले एक नए सुन्हेरी इन्तिखावाब का आगाज़ थी वह
फिर क्युओं जालिमों के दिल में खौफ और नफरत कि परत जमी है
बेबाक हिम्मत और रूहानियत कि जान आज फिरसे कायरों ने ली है !!
posted by Nomade at 10:20 PM
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