Threads of time...
Saturday, December 29, 2007
उसका बचपन
रुपहले आकाश में वह कहीं खोया है
यहाँ सर्द जमीन पर यह मासूम सोया है
आँखों में उसकी बस सूखे हुए आंसू हैं
कितने दिंनो से न जाने अन्न को तरसा और रोया है
चंद वस्त्रों में लिप्त उसका बचपन अनजान है
नहीं मालूम उसको अभी कि उसने क्या क्या खोया है
जो दिल दर्द समझता है उसको सामर्थ्य नहीं दिया है
और जो समर्थ है उसके दिल में घर कर बैठी अराजकता है
नीले अम्बर वाले ने क्या सोच उसको मानवता में पिरोया है
मंदिर कि चौखट पर यह रात दिन बिलख बिलख कर रोया है
उसका भगवान कहीं प्रसादों और शंख नाद के बीच सोया है !
यहाँ सर्द जमीन पर यह मासूम सोया है
आँखों में उसकी बस सूखे हुए आंसू हैं
कितने दिंनो से न जाने अन्न को तरसा और रोया है
चंद वस्त्रों में लिप्त उसका बचपन अनजान है
नहीं मालूम उसको अभी कि उसने क्या क्या खोया है
जो दिल दर्द समझता है उसको सामर्थ्य नहीं दिया है
और जो समर्थ है उसके दिल में घर कर बैठी अराजकता है
नीले अम्बर वाले ने क्या सोच उसको मानवता में पिरोया है
मंदिर कि चौखट पर यह रात दिन बिलख बिलख कर रोया है
उसका भगवान कहीं प्रसादों और शंख नाद के बीच सोया है !
Labels: वेह बिलखता बचपन..
posted by Nomade at 11:13 PM
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